बुधवार, 13 मार्च 2013

कऊंवा कान ल लेगे...


 बैसाखू के ट्ररा ह ओ दिन जब राजिम जाय के नाम म रिसा गे त इतवारी ह कई पारीस ले जा ना गा । तहुं ह अड़बड़ कंजुसी करथस। ओखर पदउंली पा के ट्ररा ह बउछा गे। बैसाखू ह रो डारिस फेर  ट्ररा ह नई मानीस । ह हो कहवाईस तभे ओ तीर ले टरीस ।
ट्ररा ह मानीस तहां ले बैसाखू के अंतस ले पीरा ह फुट परीस। का बताव इतवारी जब ले सरकार ह पुन्नी मेला ल कुंभ बताय हावय तब ले जी के जंजाल हो गे हे । न पुन्नी नहाय के धरम रही गे हे न त मेला के मजा आथे । रोज लाल बत्ती वाला मन के अवई-जवई अऊ पुलिस वाला मन के छेका छाकी म पुन्नी मेला के मजाच ह खतम हो गे हे ।
पहिली गांव-गांव ले कतको झन जावन। चाउर दार धर के गाड़ी बइला फांद के जातेन अऊ पुन्नी नहातेन । रात भर नाचा गम्मत चलय अऊ सगा समधी ले दुख-सुख घलो गोठियाना। आजकल कहां उसने होथे। शहरिया ट्ररी मन ह अइसे गाना नाच करथे के बहु-बेटा संग देखे म घलो सरम आथे।
इतवारी ह कही पारीस समय बदलत हे गा । समय के हिसाब से चलबे तभे त बनही। आजकल के लइका मन ह इही ल पसंद करथे।
अतका ल सुनीस त बैसाखू के जी खिसियागे। निपोर ल मजा आथे। खाली माड़ी गोड़ ल टोरत रेंगत राह अऊ पइसा लुटावत राह। राम राम घलो बने नई हो पावय। अपने म बिपतियाय रथे। शहरिया ट्ररा मन ह खाली माते रथे अऊ देवता धामी धरम करम के सत्यानाश होवत हे। अपन मन के किंदरे-बुले घलो नई सकस। खाली टोका-टोकी होवत रथे। एती जा ऐती झन जा अइसने होथे गा। बाहिर भाठा घलो नई जा सकस।
  बैसाखू के गोठ ह सिरतोन म सोचे के लइक हे। जब ले राजिम के पुन्नी मेला ल राजिम कुंभ-बनाय के कोशिश होय हे। पुन्नी मेला के मजाच ह खतम हो गे हे।
तभे त वो दिन खिलावन ह कहात रीहिस। आजकल जनाकारी अड़बड़ होवत हे महराज। पाप ह बाढ़ गे हे। धरम ल अपन सुख सुविधा बर तोड़त मड़ोड़त हे। जब धरम म चार कुंभ लिखाय हे त पांचवा कुंभ के नाम काबर देवत हे। पुन्नी मेला राहन देतीन भई उही म खरचा करके पइसा खा डारतीन। कुंभ बता के काबर पाप के भागीदार बनावत हे। तेखरे सेती मै ह पुन्नी नाहय के पुन्य ल गांवेच के तरीया म नहा के पा ले थव।
जतका मुंह ततका बात। कतेक ल गोठियाबे। अऊ अपन पीरा ल कोन ल सुनाबे। कउंवा कान ल लेगे कहात हे त कऊंवा डहार दउड़ईया मन के कमी नई हे। कोनो कान ल छु के नई देखत हे। तभे त एक झन कुंभ कही दिस जम्मो झन कुंभ-कुंभ चिचियावत हे। अरे कुंभ के महत्व ल त समझ जाव। कोन कहीथे के सरकार ह हमेशा सही काम करथे। अऊ आजकल त दिखावा के जमाना हे। जेन ह जतका बड़ अधर्मी होथे वो ह वतेक अपन आप ल धरम करम वाला देखाथें।

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