गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सरकार ला झन कोसव...


आजकल जेती देखबे तेती एकेच ठन गोठ चलते हे। जगा जगा जनाकारी होवत हे। नान नान लईका मन ल घलो पापी मन नई छोड़त हे अऊ सरकार ह एमन ल फ़ांसी म चढातीस त बचाए म लगे हे। अऊ घटना के विरोध करईया मन ल मंत्री मन ह कुकुर कहत हे त घटना के साथ देवइया मन ल गोद मा बइठावत हे।
तभे त श्यामलाल ह कहत रीहिस घोर कलजुग आ गे हे बाबू, देख ताक के रहीबे। ते हा अब्बर गुस्सेलहा हस्। ईमान धरम ल गठिया के राख ले। ए मन त राम ल धोखा देवईया हे त तोला कब धोखा दीही तेन ला पार नई पाबे। अब्बर हिन्दू हिन्दू कहात रेहेस। लुटेरा निकल गेस। बांधा तरीया खेत खार दैइहान-गोठान कुछु नई बांचे हे।
सरकार के काम जनता के सेवा करना हे फ़ेर इंहा त धंधा करे लग गे हे। धरम-करम के त ठीकाना नई हे। धर परिवार ह त संभले नई संभलत हे त राज का संभाले सकही। तैं बुजा हिन्दु-हिन्दु करत मरत रहिथस। आदिवासी मन ह हिन्दु नो हे के सतनामी मन ह हिन्दु नो हे। सबके बारा ल बजा दे हे।
आजकल सियनहा मन के इहीच गोठ हे। ऊंखर मन तीरन कुछ कामेच नइ हे। कुछु लफड़़ा होईस सरकार के हाथ धो के पीछू पड़ जथे। कहे रहेवं न। देख वइसनेच होईस्। बताए रहेव न एमन ह खाली पइसा कमाए मा लगे हे।
अब सिअनहा मन ल कोन समझा के आश्रम म आदिवासी लइका मन संग जेन काम होए हे ओमा सरकार के कोनो गलती नइए। अब जनकारी सामने आए हे त कानून ह अपन काम करबेच करही। अउ आजकल मीडिया घलो ह तील के ताड़ बनाथे तेखर सेती त लईका मन ल लुकाए जात हे। अरे भई तुरते तुरत थोड़े फ़ांसी मा चढा दीही, लेकिन कोनो समझबे नई करय।
सियनहा मन ल त बस सरकार ल कोसे के बहाना चाही अतेक बर राज हे हर जगह किसिम किसिम के अपराध होवत हे। जम्मो डहार देखे ल पड़थे। फ़ेर घर परिवार कोती घलो त देखे ल पड़थे। फ़ेर घर परिवार कोती घलो त देखे ल पड़थे। कुछ कांही होत फ़ेर इहीच मन ह कही, ए दे घर ल नई संभाल सकत हे, अउ राज ल संभाले ल चले हे।   

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

टंगिया के बेट..


तहिया के एक ठन किस्सा हे। लकड़ी काटे बर जब टंगिया बनाए गीस त जंगल के रूख-राही मन ह डर के मारे बईठका करीन। जम्मो झन के एकेच गोठ रीहिस अब का होही। हमर जिनगी के का होही। जंगल ह कइसे बाचही। अऊ जंगल नई रही त ये दुनिया के का होही। जेखर बोले के पारी आय तउने ह टंगिया उपर अपन गुस्सा उतारय। अऊ टंगिया बनईया ल घलो पानी पी पी केे गारी देवय। टंगिया बनाय ल रोके के उदीम घलो सुना डरीन।
तब एक ठन डोकरा पेड़ ह जम्मों झन ल चुप कराके कहिन। जतका फिकर तुंहला हे वतका महु ल हे। मैं जानथव टंगिया ह जंगल के जंगल ल उजाड़ दिही। हमर मन के जिन्दगी ह खतरा म पड़ गे हे। मैं ह त अपन जिनगी जी डारेव फेर मोर एक बात ल गांठ बांध के रख लव के एं टंगिया ह हमर तब तक कुछु नई बिगाड़ सकय जब तक के हमरे बीच के कोनो ह ओखर बेट नई बनही। टंगिया के जेन दिन बेट बनंहु उही दिन तुंहर मुसिबत हो ही।  छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढिय़ा के बारा साल म जेन हाल होय हे ओखर असली वजह इही हे। परबुधिया मन ह टंगिया के बेट बन के अपने ल काटत हे अऊ मिठलबरा मन ह मजा करत हे। सरकार ह दिल्ली म जा के कतको इनाम पा लय लेकिन इहां चलत लूट खसोट ह सब ल दिखत हे। करीना कपुर ल नचाय खातिर करोड़ों रूपया फंू कत  हे लेकिन अस्पताल नई बनावत हे। उद्योग मन ल जमीन दे खातिर ख्ेाती ल बरबाद करत हे लेकिन शिक्षा के व्यवसाय बर उंखर तीर पइसा नई हे।
लोटा लेके अवइया मन ह रातो रात बंगला तान दिन सौ-दू-सौ एकड़ के किसान बन गीन, फेक्टरी खोल दिन अऊ मोटर गाड़ी म घूमत हे। शहर ल चकाचक करत हे अऊ गांव के गली ह आज ले पयडगरी ले नई उबर पाय हे।  ये सब काबर होवत हे। शहर म अपराध बाढ़ गे। कोन हे एखर जिम्मेदार। राज बनीस त सोचे रीहिन के अब तो छत्तीसगढिय़ा मन के भाग लहुटही, गांव-गांव म स्कूल अऊ अस्पताल खुलही। इहां के पढ़े लिखे लइका मन ल नौकरी मिलही। लेकिन बारा साल म बारा हाल होगे।
इहां के जंगल, खदान पानी तरीया नदिया गोठान सब ल बेचे के उदीम होय लागिस। एखर विरोध करईया मन उपर लाठी बरसत हे अऊ ए काम म टंगिया के बेट बने छत्तीसगढिय़ा मन ह सहयोग करत हे।  मिठलबरा मन के चक्कर म अतका मोहा गे हे के न त उनला कोईला पोताय चेहरा दिखत हे न बरबाद होवत खेती के जमीन दिखत हे। पद अऊ पईसा के लालच म आंखी तोप ले हे। न त उनला अपन पुरखा के बानी के सुरता हे अऊ न त उनला छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा ले मतलब हे।  एक बात जम्मो झन कान खोल के अपन धियान म बईठा लेवय के माटी के काया माटी म मिल जथे लेकिन सुरता ओखरे करे जाथे जेन ह अपन माटी बर कुछु करथे। करनी के भरनी ल इही जनम म दिखथे। अऊ कईझन के दिखत घलो हे।